Kanha Kamboj की 5 बेहतरीन कविताये | Poem

Kanha Kamboj  की 5 बेहतरीन  कविताये 




1.Wo Mujhe Khilona Samajhti Thi

 खिलते हुए फूलों के रंग चुराने हैं 

मुझे ये मौसम तेरे संग चुराने है

तेरी जैसी मूरत एक और बनानी है
 
मुझे तेरे सभी अंग चुराने है 

तेरे आँखों की नमी ही चुरा लेनी है मैंने 

तेरे आँसू तुझे करके तुम्हे तंग चुराने है।



जैसे चलाता हूं वैसे नहीं चलता

कैसे बताऊं उसे यार ऐसे नहीं चलता

खुदको मेरा साया बताता है  

फिर क्यों तू मेरे जैसे नहीं चलता

तेरे इश्क में हूं बेबस इतना मैं 

जवान बेटे पर बाप का हाथ जैसे नहीं चलता 

मुझे खिलौना समझती हो तो ये बात भी सुन लो 

अब ये खिलौना पहले जैसे नहीं चलता

दर्द, दिमाग, वार, ये शायद जंग है 

मेरी जान मोहब्बत में तो ऐसे नहीं चलता

बस यही बातें हैं इस पूरी गजल में कान्हा 

कभी ऐसे नहीं चलता कभी वैसे नहीं चलता।




जंगल से एक शजर काट रहा हूं मैं

यानि किसी का घर काट रहा हूं मैं

आइने में दर्ज करता रहा हरकतें अपनी
 
ये रात खुद से मिलकर काट रहा हूं मैं

मेरा चेहरा बता रहा था गुमानियत मेरी

किसी बहरे ने कहा बात काट रहा हूं मैं 

मेरा लालच खा गया कमाई सारी  

उगने से पहले ही जो फसल काट रहा हूं मैं 

जब से पता लगा तुम्हारे ख्वाब किसी और को भी आते हैं 

तब से रात जैसे तैसे काट रहा हूं मैं 

अपनी पहचान थोड़ी पर्दे में रखो कान्हा 

लिखकर ये पूरी गजल काट रहा हूं मैं।




2.Kanha Ko Bebas Bana Gayi Wo


अपनी हकीकत में ये एक कहानी करनी पड़ी

उसके जैसी मुझे अपनी जुबानी करनी पड़ी

कर तो सकता था बातें इधर उधर की बहुत

मगर कुछ लोगों में बातें मुझे खानदानी करनी पड़ी

अपनी आँखों से देखा था मंजर बेवफाई का

गैर से सुना तो फिजूल हैरानी करनी पड़ी

मेरे ज़हन से निकला ही नहीं वो शख्स 

नये महबूब से भी बातें पुरानी करनी पड़ी

उससे पहले मोहब्बत रूह तलक की मैंने

फिर हरकतें मुझे अपनी जिस्मानी करनी पड़ी

ताश की गड्डी हाथ में ले कान्हा को जोकर समझती रही

फिर पत्ते बदल मुझे बेईमानी करनी पड़ी



जैसे चलाता हूं वैसे नहीं चलता

कैसे बताऊं यार ऐसे नहीं चलता

खुदको मेरा साया बताता है 
 
फिर क्यूं तू मेरे जैसे नहीं चलता

तेरे इश्क में हूं बेबस इतना मैं 

जवान बेटे पर बाप का हाथ जैसे नहीं चलता
 
दर्द, दिमाग, वार, ये शायद जंग है 

मेरी जां मोहब्बत में तो ऐसे नहीं चलता

बस यही बातें हैं इस पूरी गजल में कान्हा 

कभी ऐसे नहीं चलता कभी वैसे नहीं चलता।



Tera Dimag Kharab Hai Kya?

कहती है तुमसे ज्यादा प्यार करता है 

उसकी इतनी औकात है क्या?

रकीब का सहारा लेकर कान्हा को बुला दूंगी
 
तेरा दिमाग खराब है क्या?

 

3. Uska Ab Mujhse Man Bhar Gaya Hai

ये कैसा ख़्वाब में फन भर गया है

शायद पुराना कोई जख्म भर गया है 

आपके आँसू क्यों नहीं रुक रहे

क्या आँखों में आपकी गगन भर गया है

मन भर कर चूमता था वो हमें कभी

अब उसका मुझ से भी मन भर गया है

इस तरह ढाए हैं उसने सितम मुझ पर

ज़ख्म से दिल ही नहीं पूरा बदन भर गया है



अपनी हकीकत में ये एक कहानी करनी पड़ी

उसके जैसी ही मुझे अपनी जुबानी करनी पड़ी

कर तो सकता था बातें इधर उधर की बहुत

मगर कुछ लोगों में बातें हमें खानदानी करनी पड़ी

अपनी आँखों से देखा था मंजर बेवफाई का

गैर से सुना तो फिजूल हैरानी करनी पड़ी

पहले उससे मोहब्बत रूह तलक की मैंने

फिर हरकतें मुझे अपने जिस्मानी करनी पड़ी

एक छाप रह गई थी उसकी मेरे जिस्म पर

अकेले में मिली तो वापिस निशानी करनी पड़ी

हाथ में ताश की गड्डी ले कान्हा को जोकर समझती रही

फिर पत्ते बदल हमें बेईमानी करनी पड़ी

गैर से हंसकर बात कर खूब जलाया हमको

हमें भी फिर किसी का हाथ थाम शैतानी करनी पड़ी



पलकों ने बहुत समझाया, मगर ये आँख नहीं मानी

दिन तो हंसकर गुज़ारा हमने, मगर ये रात नहीं मानी

बिस्तर की सिलवट दे रही थी गवाही गैर की

हमने करवट बदल ली, मगर ये बात नहीं मानी



4. Kanha Ab To Ban Gaya Hai Tumhara Pagal Shayari


देखो है कितना बेचारा पागल

दरबदर भटकता है बेसहारा पागल

एक बार को तो आया तरस मेरी हालत पर

फिर उन्होंने कहा मुझे दोबारा पागल

अभी ना टेक पैर पानी की सतह पर

अभी तो बहुत दूर है किनारा पागल

हमने एक खत में लिखा हाल-ए-दिल अपना

और उस खत के आखिर में लिखा तुम्हारा पागल 

वो तो गांव में हैं फिर ये किसने

उसकी आवाज में हमें पुकारा पागल
 
अब तो ज़हन तक से पागल हो गया है कान्हा 

अब तो क्या ही बनाओगे तुम हमारा पागल 



इस खेल में अगर मोहरे तुम्हारे भी होते

हम अफसोस तक ना करते अगर हारे भी होते 

हमने सीखी नहीं बेवफाई इश्क में

वरना हम भी किसी और के होते तो तुम्हारे भी होते



  5.Galti Ki Tujhe Sir Pe Bitha Ke

  बात मुझे मत बता क्या बात रही है

रह साथ उसके, साथ जिसके रात रही है 

ज़रा भी ना हिचकिचायी होते हुए बेआबरू,

बता तेरे जिस्म से और कितनों की मुलाकात रही है

वस्ल की रात बस एक किस्सा बनकर रह गई

मेरे हाथ में तेरी यादों की हवालात रही है

वक्त के चलते हो जाएगा सब ठीक

अंत भला क्या होगा बुरी जिसकी इतनी शुरूवात रही है

बदन के निशान बताए गए जख्म पुराने

मोहतरमा कमजोर कहां मेरी इतनी याददाश्त रही है

गैर के साथ भीगती रही रात भर

बड़ी बेबस वो बरसात रही है

कुछ अश्क बाकी रह गया तेरा मुझमें

वरना कब किसी की इतनी कही बर्दाश्त रही है

गलती मेरी ये रही तुझे सर पर बैठा लिया

वरना कदमों लायक भी कहां तेरी औकात रही है

तेरे इश्क में कर लिया खुद को बदनाम इतना

जरा पूछ दुनिया से कैसी कान्हा की हैयात रही है


सुना है तेरी चाहत में मर गए लोग

यानी बहुत कुछ बड़ा कर गए लोग

सोचा कि देखे तुझे और देख के सोचा ये

तुझे सोचते हुए क्या क्या कर गए लोग

तेरी सोहबत में आने के बाद सुना है

नहीं दोबारा मुड़कर फिर घर गए लोग

तुझसे मोहब्बत में कुछ भी नहीं हासिल।

तेरे लिए हद से गुजर गए लोग

तुम छोड़ दो उस अप्सरा की बातें कान्हा

अप्सरा नहीं होती कहकर गये लोग


मेरे लहजे से दब गयी वो बात

तेरे हक में कही थी मैंने जो बात

तेरी एक नहीं से खामोश हो गया मैं

कहने को तो थी मुझ पर सौ बात

तू सोच, के बस तुझसे कही है 

मैंने किसी से नहीं कही जो बात

तू किसी से कर मुझे ऐतराज नहीं

  ताल्लुक अगर मुझसे रखती हो वो बात।

 Written By:- Kanha Kamboj

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